आसमां पे छाई काली घटा बादल की
घटा लाई कुछ बूँदें सावन की बरसात की
भीग गया दामन मेरा इस बरसात में
बह गए दिल के अरमां इस बरसात में
दिल हो गया बाग़-बाग़ उन गुजरी यादों से
हो गए दूर दिल के ग़म इन प्यारी यादों से
मन भटका कुछ इधर-उधर इस बरसात से
याद आये बीते लम्हे इस बरसात से
दिल में उठी फिर से कसक आज उनसे मिलने की
पर यकीं है हमें वो न मिलेंगे इस भीगी बरसात में
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
5th Dec. 1998 '126'
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