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Sunday, August 05, 2012

आफताब के माफिक

लाख कोशिश की मैंने
पयम्बर मयस्सर हुआ
भेज रहा हूँ इन हवाओं के जरिये
मुबारकबाद आपको सालगिरह की

आये और आता ही रहे ये दिन
रूठे कभी ये मुबारक दिन
छायें घटाएं हर सू खुशियों की
भीग जाएँ आप खुशियों से

आफताब के माफिक रोशन रहें आप
बहारों के दरमियाँ हर दम रहें आप
ज़िंदगी की रानाई को क़रीब से देखें
ताउम्र यूँ ही हंसती रहें आप

निकले हैं दिल से जो ये अल्फाज
छू जाएँ आपके दिल को ये अल्फाज
सालगिरह की खुशियों के साए में
नज़र है आपको मेरा ये प्यार

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
10th Aug. 2000, '123'

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