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Saturday, August 11, 2012

अपने पहलू में रोने की इजाज़त दे दो

अपने पहलू में रोने की इजाज़त दे दो
मेरे अश्कों को अपनी आँखों में सजाने की इजाज़त दे दो

मैं रोता हूँ और रोता ही चला जाऊंगा
बस तुम सीने से लगाने की इजाज़त दे दो

मय पी नहीं मगर पीने की तमन्ना है
इक बार जी भर के देखने की इजाज़त दे दो

हर दम रहूँगा दिल के क़रीब तेरे
अपनी साँसों में बसाने की इजाज़त दे दो

रात की तारीकी को चांदनी में बदल दूंगा मैं
"अजनबी' को ख्वाबों में आने की इजाज़त दे दो

-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
15th Dec. 2000, '129'

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