अपने पहलू में रोने की इजाज़त दे दो
मेरे अश्कों को अपनी आँखों में सजाने की इजाज़त दे दो
मैं रोता हूँ और रोता ही चला जाऊंगा
बस तुम सीने से लगाने की इजाज़त दे दो
मय पी नहीं मगर पीने की तमन्ना है
इक बार जी भर के देखने की इजाज़त दे दो
हर दम रहूँगा दिल के क़रीब तेरे
अपनी साँसों में बसाने की इजाज़त दे दो
रात की तारीकी को चांदनी में बदल दूंगा मैं
"अजनबी' को ख्वाबों में आने की इजाज़त दे दो
-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
15th Dec. 2000, '129'
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