थी आपको हमसे ये शिकायत
कि आती न थी आपके क़रीब
आज दुनिया का डर छोड़कर
अपनी मजबूरियों से जूझकर
सारे बंधनों को तोड़कर
आयी हूँ आपसे मिलने
चांदनी के साए में
तन्हाईयों के आसिए में
आपसे प्यार करने
आयी हूँ आपसे मिलने
अपनी साँसों में मुझे बसा लो
सारी ज़िन्दगी का प्यार दे डालो
आयी हूँ इन लम्हों को क़ैद करने
आयी हूँ आपसे मिलने
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
7th Aug. 2000, '122'
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति........