कहती हुयी हैं कुछ ये ग़ज़लें
इनको कोई आवाज़ दे दे
है इनमें जो कशिश
सारी दुनिया को वो सुना दे
होती है क्या उल्फत
मुहब्बत परस्तों को बता दे
हो जाए बस अह्सासे ग़ज़ल
दिले ग़ज़ल कोई चाक कर दे
ग़ज़लों से मुहब्बत है जिनको "अजनबी"
मेरे ख्यालों को उनके रूबरू कर दे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
26th July, 2000, '107'
khubsurat gazal....
ReplyDeleteवाह!! बहुत खूब समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/