हम दोनों अपना इक इतिहास रचेंगे
कोई न मिल सका प्यार में
हम मिलकर रहेंगे- मिलकर रहेंगे
देखेंगे कितनी जुदाई देगी ये दुनिया
जुदाई में कितना तड़पायेगी ये दुनिया
सारा जुल्म हम हंसकर सहेंगे
हम हैं पागल हम हैं दीवाने
ये दुनिया जाने न जाने
हम अहसास कराकर रहेंगे
इश्क़ की आग में जले हैं हम
मुहब्बत के समंदर में डूबे हैं हम
ताउम्र तुम्हीं से प्यार करते रहेंगे
दो दिल मगर इक जान हैं हम
सारे जहां से अन्जान हैं हम
बस यूँ ही मिलने की दुआ करते रहेंगे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
20th May, 2000, '112'
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