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Thursday, July 26, 2012

गुल बनकर आये हो मेरी ज़िंदगी में

ऐ हमसफर, ऐ हमनशीं
दिल लगाकर दिल लगी न करना
प्यार के वास्ते

किये हैं तुमने वादे जो हमसे
उन्हें निभाना न भूलना
मुहब्बत के वास्ते

दे दिया है तुम्हें अपना दिल
इसे प्यार करना न भूलना
उल्फत के वास्ते

है बना लिया तुम्हें अपनी ज़िंदगी
मेरी ज़िंदगी से बेवफाई न करना
दीवानगी के वास्ते

गुल बनकर आये हो मेरी ज़िंदगी में
कभी खार से मत बनना
इश्क़ के वास्ते

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
31st July, 2000, '113'

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