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Tuesday, July 24, 2012

इक बार इश्क़ से हुए जो बावस्ता

दूसरों को खुश होने की सलाह देते रहे
और खुद ग़म के आशियाँ में तड़पते रहे

शम्मा को रोशनाई की दुआ देते रहे
और खुद परवानों की तरह शम्मा में जलते रहे

इक बार इश्क़ से हुए जो बावस्ता
की बस रोते और सिसकियाँ भरते रहे

मय पी नहीं मगर देखा बहुत क़रीब से
नशे को उसके समझने की कोशिश करते रहे

जुदाई की आग में खूब जले तुम "अजनबी"
फिर भी दीवानों को दीवानों से मिलाते रहे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
30th July, 2000, '111'

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