जिसे समझो अपना
वही हो जाता है पराया
क्या तुम भी हो जाओगे ऐसे मेरे यारा
लाखों में से है मैंने तुमको चुना
बस तुमको ही है दिल में बसाया
क्या भूल तो न जाओगे मुझे मेरे यारा
साँसों की साँसों में तुमको है समाया
अपने हर सू बस तुमको ही पाया
क्या तन्हा छोड़ तो न जाओगे मुझे मेरे यारा
रुसवा करके जहाँ को है तुमको अपना बनाया
नज़रों में अपनी बस तुमको ही छिपाया
क्या गर्दिशों में छोड़ तो न जाओगे मुझे मेरे यारा
बहारों के साये में तुम्हीं तो लाये हो मुझे
उल्फत की राहों पर तुम्हीं ने चलना सिखाया
क्या भंवर में ही छोड़ तो न जाओगे मुझे मेरे यारा
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
29th July, 2000 '108'
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
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