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Tuesday, July 31, 2012

दिन रात रहता है , तसव्वुर तुम्हारा

इस जहां से तुझको मैं छीन लूँगा
अपने दिल की साँसों में छिपा लूँगा
धड़कते दिल की धड़कनों में बिठा लूँगा
जब चाहूँगा तेरा दीदार कर लूँगा

दिन रात रहता है , तसव्वुर तुम्हारा
हर लम्हा रहता है ख्याल तुम्हारा
मेरी ज़िंदगी में जाओ तुम
वरना खुद को ज़िंदगी से दूर कर लूँगा

तड़पता रहता हूँ दिन भर
सोचता रहता हूँ शब भर
मेरी साँसों में समा जाओ तुम
वरना खुद को साँसों से छीन लूँगा

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
5th Aug. 2000 '118'

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