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Thursday, July 12, 2012

बागवाँ ने हर कली के नाज़ उठाये थे

बागवाँ ने हर कली के नाज़ उठाये थे
फिर भी कुछ गुल किम्वा शिगुफ्ता निकले

जुस्तुजू में निकले थे हम जिस हंसी की
सारा जहां मिला मगर एक वो ही मिले

पुकारा था लोगों ने मुझे कहकर दीवाना
उन्हीं ने अब नाम दिया है दिलजले

मेरी मय्यत पे चढाने आये हैं फूलों की चादर
अब भी उन्हें खबर नहीं हम उनसे जुदा हो चले

सुकूँ को तलाशा तुमने बहुत "अजनबी"
मगर जहाँ गए बस जले ही जले

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
15th July, 2000, '104'

3 comments:

  1. मेरी मय्यत पे चढाने आये हैं फूलों की चादर
    वाह बहुत खूब!

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  2. मेरी मय्यत पे चढाने आये हैं फूलों की चादर
    अब भी उन्हें खबर नहीं हम उनसे जुदा हो चले
    ऊपर ये शेर अधूरा रह गया था।

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  3. वाह बहुत खूब...

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