शायद न पा सकेगी तू वो सुकूँ
जो मिलता था तुझे मेरी बांहों में
लगाएगा जब भी वो तुम्हें अपने सीने से
महसूस करेगी तू इक उलझन
पर,
तू न हाँ कर सकती , न न कर सकती
आखिर तू कर भी क्या सकती
क्योंकि
वो तुम्हारा सुहाग है
तुम्हारी ज़िन्दगी का मालिक है
ऐसे हालातों में
अक्सर याद आएगी तुझे मेरी
दिल रोयेगा और आँख भर आएगी
अश्क भी बहने लगेंगे
पर,
कसम है तुझे अपने प्यार की
आंसुओं को निकलने न देना
दिल को रोने न देना
अपने प्यार के लिए
एक घूँट समझकर
हँस के पी लेना
क्योंकि
कुछ लोग यहाँ
सहने के लिए ही हैं!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'35' 31st May, 1999
बहुत भावपूर्ण.
ReplyDeleteअब कुछ नहीं कहना निशब्द कर दिया आपने ...
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