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Monday, May 30, 2011

वो सुकूँ

शायद पा सकेगी तू वो सुकूँ
जो मिलता था तुझे मेरी बांहों में
लगाएगा जब भी वो तुम्हें अपने सीने से
महसूस करेगी तू इक उलझन
पर,
तू हाँ कर सकती , कर सकती
आखिर तू कर भी क्या सकती
क्योंकि

वो तुम्हारा सुहाग है
तुम्हारी ज़िन्दगी का मालिक है
ऐसे हालातों में
अक्सर याद आएगी तुझे मेरी
दिल रोयेगा और आँख भर आएगी
अश्क भी बहने लगेंगे
पर,
कसम है तुझे अपने प्यार की
आंसुओं को निकलने देना
दिल को रोने देना

अपने प्यार के लिए
एक घूँट समझकर
हँस के पी लेना
क्योंकि
कुछ लोग यहाँ
सहने के लिए ही हैं!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'35' 31st May, 1999

2 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण.

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  2. अब कुछ नहीं कहना निशब्द कर दिया आपने ...

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