देखे थे जो सपने
वो अधूरे रह गए
मन में छाई थीं कुछ कल्पनाएँ
वो भी पूरी न हुयीं
देखा जब मैंने उस चौखट से
जिस पर बैठा था मैं
न जाने कब से
तुमने मेरा दिल तोड़ दिया
मुझे ग़मों के संग
फिर छोड़ दिया
खुशियाँ फिर रूठ गयीं
मुझसे दूर -दूर हो गयीं
काश तुम मेरे पास होती
तो मेरे पास
लाख खुशियाँ होती
पर
सोचने से अब होगा क्या
आ जाओगी तुम क्या
शायद नहीं शायद नहीं
मेरी किस्मत ही ऐसी है
जो इस वक़्त
मैं बिलकुल अकेला हूँ!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'34' 24th May, 1999
wah sir kya shandar alfazo se sajai h apne
ReplyDeleteagar wo padegi to ye khwab jaror mukammal hoga...
अकेलेपन का अहसास ... खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आप सब का
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