जब भी मैंने तुम्हें लगाया सीने से
और भर लिया तुम्हें अपनी बाँहों में
तब-तब महसूस की मेरे दिल ने
इक खुशबू
शायद थी वो खुशबू तुम्हारे यौवन की
जिसमें मेरा मन डुबकियाँ ले रहा था
और मैं सराबोर हो रहा था
तुम्हारे सीने की छुवन भर से
मुझमे उठती थी इक सिहरन
तब
और भर लिया तुम्हें अपनी बाँहों में
तब-तब महसूस की मेरे दिल ने
इक खुशबू
शायद थी वो खुशबू तुम्हारे यौवन की
जिसमें मेरा मन डुबकियाँ ले रहा था
और मैं सराबोर हो रहा था
तुम्हारे सीने की छुवन भर से
मुझमे उठती थी इक सिहरन
तब
मैं तुझमें और तू मुझ में समा जाती थी
आज जबकि
तुम जाती हो मेरे आसपास
फिर भी सोच रहा हूँ, कल्पना कर रहा हूँ
कि
काश अगर तुम होती
तुम जाती हो मेरे आसपास
फिर भी सोच रहा हूँ, कल्पना कर रहा हूँ
कि
काश अगर तुम होती
तो आज
अपने दिल को तेरे दिल में समा देता।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'25' 10th May, 1999
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'25' 10th May, 1999
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