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Wednesday, May 11, 2011

मेरी सारी रुस्वाईयां

बाँहों में तुम्हें लेके करता हूँ महसूस
जैसे मुझे मिल गयी सारी दुनिया
दामन में मेरे गयीं सारी खुशियाँ
दूर, बहुत दूर हो गयीं
मुझसे मेरी सारी रुस्वाईयां

अब तो कहता है मन
कि
टूटे ये बंधन दोस्ती का
बस यूँ ही जुड़ा रहे
ये रिश्ता ख़ुशी का

जिसे कहती है दुनिया
असर है ये आँखें होने का चार
पर मैंने नाम दिया है इसे प्यार

कैसे किया जाता है प्यार
होता है इसमें क्या?
नहीं जनता हूँ
पर
मालूम है इतना जरुर
जब भी याद आती है उसकी
तो देखता हूँ उसको चाँद में !!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'27' 16th May, 1999

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