इस प्यार को न तुम मरने देना
जो करना पड़े कर लेना
जो सहना पड़े सह लेना
अगर तू मेरी निशा है
तो मेरी सुबह भी तू ही है
गर ये प्यार न रहा
तो समझूंगा मैं
ये जहाँ न रहा
इस प्यार के लिए मैं
ज़िन्दगी लुटा सकता हूँ
अपने को मिटा सकता हूँ
ऐ मेरी ज़िन्दगी की सुबह
तुमसे यही है तमन्ना
यही है आरज़ू
कि
इस प्यार को न तुम मरने देना ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'29' 31st May, 1999
वाह! बेहतरीन लिखा है...
ReplyDeleteSHUKRIYA NAWAZ SAHAB
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteप्यार कभी नहीं मरता, यह तो अमर है, शाहिद भाई ....
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