तजुर्बा
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Friday, May 06, 2011
आजकल
आजकल
सुस्ती
से
भरे
दिन
आलस
से
भरी
रातें
गुजरती
हैं
क्योंकि
मौसम
ही
है
ऐसा
भटकता
है
मन
बहकता
है
दिल
तलाश
करता
है
कुछ
क्या
,
क्या
?
न
जाने
-
न
जाने
क्या
?
-
मुहम्मद
शाहिद
मंसूरी
'
अजनबी
"
'23' 9th May, 1999
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