नहीं हैं मेरे पास वो शब्द
जो कर सकें तारीफ तेरी
कहाँ से लाऊं वो शब्द
जो कर सकें तारीफ तेरी
किसके रूबरू करूँ तुझे
नहीं आ रहा है समझ में मुझे
इस दुनिया में
नहीं है कुछ ऐसा
जिसे मान सकूँ कि
ये है तेरे जैसा
तुम हो सबसे जुदा सबसे अलग
मैं जो कहना चाहता हूँ
तुम वो सुनना चाहती हो
मैंने वो कह दिया
तूने भी सुन लिया
बस यही हैं वो शब्द
जो कर रहे हैं तारीफ तेरी
"अजनबी" सोच रहा है आज
कैसे करूँ तारीफ तेरी
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'32' 1st June, 1999
No comments:
Post a Comment