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Wednesday, August 17, 2011

ग़मों से प्यार

तुमने तो प्यार किया था अपना समझकर
ठुकराया उसने तुम्हें इक अनजाना समझकर

इसे भाग्य का फैसला कहूँ
या किस्मत का खेल कहूँ

चाहता है जो रब होता है वही
मैं जो भी सोचूँ तुम जो भी कहो

था जो तुम्हारा अब हो गया पराया
उठ गया तुम्हारे सर से अब वो साया

होगा तुम्हें याद अब भी वो नज़ारा
खायीं थीं तुमने कसमें किये थे तुमने वादे
निकले सारे फरेब हो गए सारे झूठे

जीना तो पड़ता ही है दुनिया में
यादों के सहारे या दर्द के साथ

सीख लें वे ग़मों से प्यार और दर्दे जुदाई का सहना
यही है प्यार करने वालों से "अजनबी" का कहना

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
17th Aug., 1999, '55'

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