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Wednesday, August 10, 2011

ज़िन्दगी से बेखबर रहा

तोड़ दी तुमने सारी कसमें
तोड़ दिए जीवन के लाखों वादे
भरम भी अब रहा
तुम गए तो गए मगर फिर भी
मैं ज़िन्दगी से बेखबर रहा

छोड़ दूँ दुनिया या दुनिया में रहूँ
रहूँ आखिर तो कहाँ रहूँ
तुम नहीं क़रीब, ही मेरे आसपास
कहूँ अब अपना मैं किसको ख़ास

याद तुम्हें पल-पल सताएगी मेरी
जानता हूँ मैं, समझता हूँ मैं
पर हूँगा मैं, जाने किसके बीच में
मन में ढूँढोगी, तलाश करोगी सपनों में
लेकिन तस्वीर जरुर होगी मेरी
तुम्हारे दिल के आईने में !!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
3rd Aug., 1999, '51'


1 comment:

  1. आप तो जिन्दगी से बेखबर रह कर भी जिन्दगी के बारे में इतना कुछ लिख दिया.... बेहतरीन रचना....

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