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Thursday, August 04, 2011

वही है शबनम

अपनी तक़दीर का शुक्रिया
अदा मैं कैसे करूँ
जिसने दिया है मुझे ऐसा
जिसे सामने बिठा के
मैं तो उसे आँखों से प्यार करूँ

अपनी गोद में बिठा के
तारों से जिसकी मांग भरूँ
दिल में तमन्ना है मेरी
जब भी देखूं मैं अपने
दिल के आईने में
सिर्फ उसी का दीदार करूँ

वही है निशा
वही है शबनम
वही है डाली
वही है फूल
आखिर कैसे मैं उसे
जी भर के प्यार करूँ

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

20th July, 1999, '48'

2 comments:

  1. क्या बात है...

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  2. अपनी गोद में बिठा के
    तारों से जिसकी मांग भरूँ
    दिल में तमन्ना है मेरी
    जब भी देखूं मैं अपने
    दिल के आईने में
    सिर्फ उसी का दीदार करूँ

    waah !...quite romantic !

    .

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