चाँद छिपा है बदली में
तारे भी नहीं हैं आसमां में
ऐसे में आ जाओ ऐ मेरे सनम
तुझे है मेरी चाहत की कसम
ऐ हवा जाकर जरा उनसे कह दे
बैठा है आज कोई तेरी आस लगाये
आज कुछ ऐसा है मानो
नहीं है कोई इस दुनिया में
ऐसे में तू आजा सनम
तुझे है मेरे प्यार की कसम
ऐ नज़ारे जाकर जरा उनसे कह दे
बैठा है आज कोई
तेरी तस्वीर को दिल से लगाये
रहें हैं सूनी, मंजिल भी है सूनी
है, बस रहा अँधेरा इनमें
ऐसे में आकर तू मुझसे मिल
न रुला अब और मेरा दिल
ऐ बरसात की बूंदें
जाकर जरा उनसे कह दे
बैठा है आज कोई
तेरी यादों से दिल लगाये !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
21st July, 1999, '49'
ऐ बरसात की बूंदें
ReplyDeleteजाकर जरा उनसे कह दे
बैठा है आज कोई
तेरी यादों से दिल लगाये !!
बहुत खूब ........
शाहिद भाई, बहुत खूब लिखते हैं आप।
ReplyDelete------
ब्लॉगसमीक्षा की 27वीं कड़ी!
आखिर इस दर्द की दवा क्या है ?
बहुत बहुत शुक्रिया जाकिर भाई, ये 12 साल पहले की लिखावट है, जो अब मुझे अच्छी नहीं लगती.. बस ये ब्लॉग इसलिए बनाया है.. ये मेरी डायरी कहीं खो न जाये....
ReplyDeleteकभी वक़्त मिले तो नई कलम - उभरते हस्ताक्षर ब्लॉग पर आयें..
http://naiqalam.blogspot.com