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Sunday, August 07, 2011

मंजिल भी है सूनी

चाँद छिपा है बदली में
तारे भी नहीं हैं आसमां में
ऐसे में जाओ मेरे सनम
तुझे है मेरी चाहत की कसम
हवा जाकर जरा उनसे कह दे
बैठा है आज कोई तेरी आस लगाये

आज कुछ ऐसा है मानो
नहीं है कोई इस दुनिया में
ऐसे में तू आजा सनम
तुझे है मेरे प्यार की कसम
नज़ारे जाकर जरा उनसे कह दे
बैठा है आज कोई
तेरी तस्वीर को दिल से लगाये

रहें हैं सूनी, मंजिल भी है सूनी
है, बस रहा अँधेरा इनमें
ऐसे में आकर तू मुझसे मिल
रुला अब और मेरा दिल
बरसात की बूंदें
जाकर जरा उनसे कह दे
बैठा है आज कोई
तेरी यादों से दिल लगाये !!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
21st July, 1999, '49'

3 comments:

  1. ऐ बरसात की बूंदें
    जाकर जरा उनसे कह दे
    बैठा है आज कोई
    तेरी यादों से दिल लगाये !!
    बहुत खूब ........

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया जाकिर भाई, ये 12 साल पहले की लिखावट है, जो अब मुझे अच्छी नहीं लगती.. बस ये ब्लॉग इसलिए बनाया है.. ये मेरी डायरी कहीं खो न जाये....
    कभी वक़्त मिले तो नई कलम - उभरते हस्ताक्षर ब्लॉग पर आयें..

    http://naiqalam.blogspot.com

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