है मुझमें वो जूनून तुम्हें पाने का
है मुझमें वो पागलपन तुम्हें पाने का
शायद तुम में नहीं..
है वो लगन तुमसे मिलने की
है वो आरज़ू तुम्हें देखने की
शायद तुम में नहीं ..
है पता वो आहट तुम्हारे आने की
है पता वो तरीका तुम्हारे जाने का
शायद तुम में नहीं..
है दर्द मेरे सीने में
है रुकावटमेरे जीने में
शायद तुम में नहीं..
है वो अहसास तुम्हारी चाहत का
है वो सावन तुम्हारे प्यार का
शायद तुम में नहीं..
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
15th Apr. 2000 '75'
खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteकभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
क्या बात है, वाह वाह ......
ReplyDeleteहै वो अहसास तुम्हारी चाहत का
ReplyDeleteहै वो सावन तुम्हारे प्यार का
शायद तुम में नहीं..वाह! बहुत खूब....