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Sunday, September 04, 2011

अश्कों को न बहाया करो

इस तरह मुझे देखकर न तुम मुस्कुराया करो  
लाख मजबूरियां सही बस तुम आ जाया करो

यूँ तो कटने को कट जाएगी ये ज़िन्दगी  
लेकिन  इतना मुझे न तुम सताया करो  

सोचता हूँ रहूँ हर दम तेरी बाँहों में  
अरे इस पागल को कभी तो समझाया करो  

बहुत कीमती है तुम्हारी आँखों का पानी  
इस तरह इन अश्कों को न बहाया करो  

अपनी ज़िन्दगी को ऐ "अजनबी"  
इतना मत रुलाया करो - रुलाया करो  

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'72'  3rd May, 2000

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