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Friday, September 09, 2011

हवाओं से मेरा पता पूछते हैं

वो रोते  हैं मेरे लिए 
मैं रोता हूँ उनके लिए
वो जीते हैं मेरे लिए 
मैं मरता हूँ उनके लिए
दोनों बने हैं बस प्यार के लिए 

खाईं हैं उसने कसमें 
किये हैं हमने वादे 
साथ निभाने के लिए
आँखों ही आँखों में मुझे बुला के 
फिर खुद दूर चले जाते हैं 
मेरी बेक़रारी बढाने के लिए

छत पर तन्हा बैठ कर 
चाँद को निहारते हैं
हवाओं से मेरा पता पूछते हैं
 मुझे देखने के लिए 

दुनिया से दूर होकर  
तन्हाईयों में बैठते हैं और 
सन्नाटों से प्यार करते हैं
मुझे सोचने के लिए

-  मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'74'  18th Apr. 2000

1 comment:

  1. आँखों ही आँखों में मुझे बुला के
    फिर खुद दूर चले जाते हैं
    मेरी बेक़रारी बढाने के लिए

    छत पर तन्हा बैठ कर
    चाँद को निहारते हैं
    हवाओं से मेरा पता पूछते हैं
    मुझे देखने के लिए ।
    बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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