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Wednesday, November 09, 2011

बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे

हवा
जाकर जरा
उन्हें बता
बुलाता है तुम्हें कोई शायर
अधूरी है उसकी ग़ज़ल
नहीं है पूरी कोई नज़्म
बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे

चाँद
जाकर जरा
उन्हें बता
जल रहा है मुहब्बत की तपिश में
डूब रहा है प्यार की कश्ती में
नहीं मिलेगा उसे कोई साहिल
बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे

नज़ारे
जाकर जरा
उन्हें बता
मचल रहा है तुमसे मिलने को
तड़प रहा है तुम्हें देखने को
थम जाएँगी उसकी साँसें
बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
15th Dec. 1999, '83'

1 comment:

  1. थम जाएँगी उसकी साँसें
    बिन तुम्हारे- बिन तुम्हारे...बहुत खूब....

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