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Sunday, November 13, 2011

लाख मुझे भुलाने की कोशिश करलो

लाख मुझे भुलाने की कोशिश करलो
पर मुझे पल भर भुला पाओगी

जब भी आईने में खुद को निहारोगी
अक्सर मुझे और मुझे ही पाओगी

शाम की तन्हाई में होगी जब तन्हा
अपने को मेरे ख्यालों के रूबरू पाओगी

मुश्किल में होगा जब तुम्हारा दिल
मेरे नग़मों से अपना दिल बहलाओगी

रोक सको रोको ख्वाबों में मुझे
तन्हा रातों में "अजनबी" को जुरूर पाओगी

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
7th June 2000, '87'

3 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट पढ़कर याद आया वो कहते है न कि, "वो आदत ही क्या जो बादल जाये" और "वो प्यार ही क्या भुलाया दिया जाये"
    बहतरीन प्रस्तुति
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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