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Sunday, November 13, 2011

तारों के झिलमिलाने से

तारों के झिलमिलाने से, चाँद के मुस्कुराने से
हमें उनकी मुस्कराहट याद आई

देखा जब मैंने चाँद को अपनी आँखों से
तो मुझे वो ही नज़र आयी

खो गया जब मैं ऐसे नज़ारे में
दिल में यादों की घटा छाई

किसी शायर की है वो शायरी
मेरे दिल में जो प्यार बनके आई

टूट जाएँ सारी हदें मिल जाएँ दो दिल
हो जाये दूर फिर ये तन्हाई

कितना खुशकिस्मत है तू "अजनबी"
जो तूने इतनी प्यारी महबूबा पाई

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
15th Dec. 1999 '86'

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