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Monday, April 11, 2011

किताबें


जब कभी सोचता हूँ दुनिया के नजारों में

तो इनका हल ढूंढता हूँ अपनी किताबों में


नहीं आता मुझे जब कुछ याद

तो खो जाना चाहता हूँ अपनी किताबों में


उसे यहाँ खोजता हूँ वहाँ खोजता हूँ

लेकिन देखता हूँ उसे अपनी किताबों में


नहीं होता है जब कोई मेरे साथ

तो दिल को लगाता हूँ अपनी किताबों में


ईश्वर ने बनाया है इसे सोच समझकर

इसलिए इंसान मिल जाना चाहता है अपनी किताबों में


जब भी आता है मेरे ऊपर कोई ग़म

तो ख़ुशी तलाश करता हूँ अपनी किताबों में


- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'15' 15th Apr. 1999

1 comment:

  1. किताबों से दिल का लगाना अच्छा लगा शेर बहुत खुबसूरत है दिल से निकला वाह , बहुत खूब (वरिफिकेसन हटा दें तो अच्छा रहेगा )

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