तेरा ये दिल है घर मेरा
नज़रें तेरी हैं मेरी निगाहें
जिनमें
सजाता हूँ मैं कुछ हसीं सपने
जो सच होंगे कभी अपने
इक हरा भरा आँगन होगा
बीच में होगा पानी
घर के ऊपर होंगे कुछ फूल
जिन्हें देखकर
मन लहलहाएगा
और दिल मचल जायेगा
कुछ देर बाद तुम रूठ जाओगी
और मैं मनाऊंगा
हँसना तुम्हारा होगा इशारा
रूठे से मन जाने का
फिर भर लोगी तुम मुझे अपनी बाहों में
और मैं तुझे अपनी बाहों में
देखेंगे फिर कुछ और
हसीं और हसीं सपने।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'18' 15th Apr, 1999
बहुत उम्दा!!
ReplyDelete