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Thursday, April 28, 2011

सपने

तेरा ये दिल है घर मेरा
नज़रें तेरी हैं मेरी निगाहें
जिनमें
सजाता हूँ मैं कुछ हसीं सपने
जो सच होंगे कभी अपने

इक हरा भरा आँगन होगा
बीच में होगा पानी
घर के ऊपर होंगे कुछ फूल

जिन्हें देखकर
मन लहलहाएगा
और दिल मचल जायेगा
कुछ देर बाद तुम रूठ जाओगी
और मैं मनाऊंगा

हँसना तुम्हारा होगा इशारा
रूठे से मन जाने का
फिर भर लोगी तुम मुझे अपनी बाहों में
और मैं तुझे अपनी बाहों में
देखेंगे फिर कुछ और
हसीं और हसीं सपने

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'18' 15th Apr, 1999

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