ख़ुशी को ख़ुशी से बिता भी न पाए
लो ये ग़म के दिन आ गए
दिल से दिल की न निकली थी कोई आरज़ू
और ये दिल के अरमां चले गए
जुल्फों को ठीक से बिखेरा भी न था उनकी
न ही दिल भर के देखा था उनको
वो तो मुझ पर बिजलियाँ गिरा के चले गए
न राहे याद उनको वो कसमें, वो वादे
जो किये थे हमने उनसे खुले आसमाँ के नीचे
लाख रोका मैंने उनको पर उसने इक न मानी
और मुझे इस तरह छोड़ कर चले गए
पर जाते - जाते दे गए इक तोहफा
बहाने के लिए अश्क और समझाने के लिए दिल
शायद उन्होंने मुझे समझा "अजनबी'
जो इस तरह जुदा होकर चले गए !!!!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'13' 7th March, 1999
chaliye ab to ultimately khushiyaan aayin permanently..
ReplyDeleteshukriya sahab
ReplyDeleteखूबसूरत ....
ReplyDeleteलाख रोका मैंने उनको पर उसने इक न मणि
मणि को मानी कर लें ..