बनेगी जब तू दुल्हन मेरी
मैं हूँगा दूल्हा तेरा
याद करेगी तू वो दिन
जब सोचते थे हम और तुम
की
कैसे होगा मेरा और उम्हर मिलन
बीच में थी ये जालिम दुनिया
रास्ते में थे काँटों रूपी लोग
आज तुम उस दीवार को तोड़कर
उन काँटों पर चलकर आयी हो
अपने इस यार की बाँहों में समाने के लिए
ओ! मेरे प्यार, जल्दी आ
न आ जाए बीच में कोई और दीवार
मुबारक हो तुमको आज का ये दिन
मेरे लिए है जो इक यादगार दिन
यहाँ नहीं मिल पाते हैं लोग
मिलके बिछड़ जाते हैं लोग
बड़ी किस्मत वाले हैं हम और तुम
जो समाये हुए हैं आज
इक दूसरे की बाँहों में !!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'12' 4th March, 1999
खुबसूरत अहसास.... बेहतरीन प्रस्तुति....
ReplyDeleteMilee ya nahi abhi tak, bataiyega
ReplyDeletehttp://www.naiqalam.blogspot.com
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