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Wednesday, December 15, 2010

दुल्हन

बनेगी जब तू दुल्हन मेरी
मैं हूँगा दूल्हा तेरा
याद करेगी तू वो दिन
जब सोचते थे हम और तुम
की
कैसे होगा मेरा और उम्हर मिलन
बीच में थी ये जालिम दुनिया
रास्ते में थे काँटों रूपी लोग
आज तुम उस दीवार को तोड़कर
उन काँटों पर चलकर आयी हो
अपने इस यार की बाँहों में समाने के लिए
! मेरे प्यार, जल्दी
जाए बीच में कोई और दीवार
मुबारक हो तुमको आज का ये दिन
मेरे लिए है जो इक यादगार दिन

यहाँ नहीं मिल पाते हैं लोग
मिलके बिछड़ जाते हैं लोग
बड़ी किस्मत वाले हैं हम और तुम
जो समाये हुए हैं आज
इक दूसरे की बाँहों में !!!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'12' 4th March, 1999

3 comments:

  1. खुबसूरत अहसास.... बेहतरीन प्रस्तुति....

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