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Thursday, December 15, 2011

बहता हुआ आब हो तुम

दिल ने जिसे चाहा था
होठों ने जिसे पुकारा था

वही तस्वीर हो तुम
ख्वाबों की तामीर हो तुम
उल्फत के दरिया में
बहता हुआ आब हो तुम

तसव्वुर है तुम्हारा
तमन्नाएँ हैं तुम्हारी
तबस्सुम भी है तुम्हारी
मगर तुम हो हमारी

गर देख लूं तुम्हें
तो जाये खुमार
इकरारे इश्क़ कर लूं
फिर करूँ ज़िक्रे यार

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
2nd July, 2000 '98'

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