दिल ने जिसे चाहा था
होठों ने जिसे पुकारा था
वही तस्वीर हो तुम
ख्वाबों की तामीर हो तुम
उल्फत के दरिया में
बहता हुआ आब हो तुम
तसव्वुर है तुम्हारा
तमन्नाएँ हैं तुम्हारी
तबस्सुम भी है तुम्हारी
मगर तुम हो हमारी
गर देख लूं तुम्हें
तो आ जाये खुमार
इकरारे इश्क़ कर लूं
फिर करूँ ज़िक्रे यार
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
2nd July, 2000 '98'
बहुत खूब.
ReplyDeleteशाश्वत प्रेम....बधाई
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