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Monday, January 02, 2012

आई है जो खिजाँ तो आएँगी जरूर बहारें

तन्हा न कट सकेंगी बेचैन ये रातें
पल-पल सताएंगी वो तेरी बातें

सोचेंगे खो जाएँ ख्वाबों की दुनिया में
मगर रह-रह के याद आएँगी गुज़री मुलाकातें

वज़्म में उल्फत का चर्चा होगा जब भी
होगी आँखों से बारहा अश्कों की बरसातें

कुछ ऐसा कर दे ऐ मेरे खुदा
आये वो मगर न आयें उसकी यादें

इस तरह भुलाने से भुला पाया है कोई "अजनबी"
आई है जो खिजाँ तो आएँगी जरूर बहारें

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
2nd July, 2000 '99'

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