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Friday, June 10, 2011

मैं जहाँ भी हूँ

हँसना मेरी ज़िन्दगी पे यारो
गर मिले मुझे मेरी मंजिल

कोशिश तो कर रहा हूँ पूरी
फिर भी कोई चीज रह जाये अधूरी

तो कर भी क्या सकता हूँ
जी सकता हूँ मर सकता हूँ

हंसके तुमको नहीं मिलेगा कुछ
पर मेरा दिल कहेगा बहुत कुछ

इसीलिए तो कह रहा हूँ यार
करना ऐसा एक भी बार

उस वक़्त मैं जहाँ भी हूँ
समझ लेना यही है "शाहिद" की मंजिल

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

30th June, 1999, '40'

1 comment:

  1. आख़िर मंजिल मिल ही गयी

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