लोग समझते हैं कि मैं खुश हूँ
कितने हैं मेरे पास ग़म
नहीं मालूम है ये
इस जालिम दुनिया को
गर मेरे पास ख़ुशी है एक
तो ग़म हैं कई गुना ज्यादा
होंठ जब हँसते हैं
तब दिल रोता है
एक पल के लिए सोचता है
क्या वो मुझे मिल पायेगी ?
क्या वो मेरा साथ निभा पायेगी?
क्या वो अपना हाथ मेरे हाथ में दे पायेगी?
क्या वो मुझसे जुदा होकर खुश रह पायेगी?
अक्सर सोचता हूँ मैं ये
जब भी होती है मेरे पास तन्हाई
दुनिया से ग़म बचाने पड़ते हैं
लाख दिल करे हाले दिल सुनाने को
फिर भी सारे ग़म छिपाने पड़ते हैं
अब तो
हर ख़ुशी मेरा ग़म है
हर हंसी मेरा ग़म है
जब तक कि
वो मेरे पास नहीं
वो मेरे पास नहीं !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st June, 1999, '37'
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