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Wednesday, June 01, 2011

वो मेरे पास नहीं

लोग समझते हैं कि मैं खुश हूँ
कितने हैं मेरे पास ग़म
नहीं मालूम है ये
इस जालिम दुनिया को
गर मेरे पास ख़ुशी है एक
तो ग़म हैं कई गुना ज्यादा

होंठ जब हँसते हैं
तब दिल रोता है
एक पल के लिए सोचता है

क्या वो मुझे मिल पायेगी ?
क्या वो मेरा साथ निभा पायेगी?
क्या वो अपना हाथ मेरे हाथ में दे पायेगी?
क्या वो मुझसे जुदा होकर खुश रह पायेगी?

अक्सर सोचता हूँ मैं ये
जब भी होती है मेरे पास तन्हाई
दुनिया से ग़म बचाने पड़ते हैं
लाख दिल करे हाले दिल सुनाने को
फिर भी सारे ग़म छिपाने पड़ते हैं

अब तो
हर ख़ुशी मेरा ग़म है
हर हंसी मेरा ग़म है
जब तक कि
वो मेरे पास नहीं
वो मेरे पास नहीं !!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

1st June, 1999, '37'

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