ज़िन्दगी के सफ़र में
तो शायद मैं रहता अधूरा
आज दिल ये कह रहा है
थोड़ा सा हँस के थोड़ा सा रोके
की शायद तुम्हारा साथ पके
मैं हो गया हूँ पूरा
लेकिन
मेरा बस यही है कहना
जो ग़म आये ख़ुशी से सहना
अपने प्यार के लिए
इस बंधन को टूटने न देना
इस प्यार को रूठने न देना
अपने को
इस जहां से बचाए रखना
सारी दुनिया से नज़रें छिपाए रखना
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1st June, 1999 '38'
1st June, 1999 '38'
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