डर है कहीं पड़ न जाये कम ये ज़िंदगी
तुमसे प्यार के लिए
तुमसे दिल की बातें कहने के लिए
तुम्हें बांहों में भरने के लिए
तुम्हें जी भर के देखने के लिए
तेरी मांग अपने प्यार से भरने के लिए
तेरे पल्लू में तारे टांकने के लिए
तुझे कंगन पहनाने के लिए
तुझे चाहने के लिए
क्योंकि
मैं तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ इतना
न किया हो किसी ने किसी को इतना
आज रब से दुआ मांग रहा हूँ
बस इतनी ज़िंदगी दे दे मुझे
जी भर के प्यार कर सकूँ तुझे
ऐ मेरे यादों के आईने में रहने वाले
क्या तुम भी चाहते हो इतना प्यार जताना
सच बताना- सच बताना - सच बताना
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'36' 1st June, 1999
बहुत सुन्दर।
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