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Friday, May 06, 2011

सलामत दोस्ती

मिले और मिलते रहो
दोस्ती तुम्हारी रहे सलामत हमेशा
याद करे वो तुम्हें इतना
कि

कर पाओ याद तुम उसे इतना
वक़्त पर करना याद
जब कभी महसूस हो कमी मेरी
तो देना आवाज़ अपने इस प्यारे यार को,

जो बैठा है इस वक़्त अकेला,
बिल्कुल अकेला
नहीं है कोई मेरे साथ
है अगर साथ तो यादें,
सिर्फ तेरी यादें

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'

'24' 9th May 1999

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