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Friday, April 29, 2011

खुशबू

ये दुनिया बदल गयी
ये नज़ारे बदल गए
बदल गया सारा ज़माना

पर मेरे दोस्त तुम बदलना
तुम्हीं से है ख़ुशी तुम्हीं से है ग़म
तुमसे बिछड़कर ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी रहेगी

हो जाएगी काले आसमां की तरह
जिसमें नहीं आता है कुछ और नज़र
सिवाए अँधेरा और कालेपन के

गर तुमने दी जुदाई
और जीवन की राह पर पकड़ा मेरा हाथ
तो मैं हो जाऊंगा
उस फूल की तरह
जो अभी-अभी
कली से फूल बना है

जिसमें रही है इक खुशबू
जो दे रही है गवाही कि
तुम मुझमें हो, मुझमें

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'19' 23rd Apr. 1999

1 comment:

  1. जिसमें आ रही है इक खुशबू
    जो दे रही है गवाही कि
    तुम मुझमें हो, मुझमें ।
    बहुत सुन्दर बधाई

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