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Tuesday, December 14, 2010

अंकुर

आज जब मैं खोया हुआ था
ख्वाबों में
सोच रहा था
उस अंकुर के बारे में
जो आज अंकुर नहीं
शायद कुछ और हो गया
लगा जैसे
वो तो आज वृक्ष हो गया
कुछ दिनों बाद आया पतझड़
और उड़ा ले गया उसके
हरे भरे पत्तों को
और मैं देखता रह गया
इन सारे नजारों को
अहसास नहीं हो रहा था
विश्वाश नहीं हो रहा था
कि
वो अंकुर ऐसा कैसे हो गया ?
शायद पहचान सका वो,
इस अजनबी को
और रह गया "अजनबी" से
अजनबी बनकर!!!!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'

'11' 28th Feb., 1999

1 comment:

  1. वो अंकुर ऐसा कैसे हो गया ?
    yahi to niyati hai ham sab dekhte rahte hai achhi soch .....

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