लेकिन तेरे पास नहीं तेरा साजन
बजती होगी तेरी पायल, बोलती होगी तेरी बिंदिया
लाख बुलाने पर नहीं आती होगी तुझे निंदिया
मेरी यादों को सोचते होगे
मेरी बातों को सोचते होगे
तन्हाईयों में छिपकर
मुझसे बातें करते होगे
मेरी बातों को सोचते होगे
तन्हाईयों में छिपकर
मुझसे बातें करते होगे
जल्दी ही होगा दूर अब ये इंतज़ार
फूल ही फूल होंगे, नहीं होगा इक भी खार
जब भी तूने अपनी मांग को सजाया होगा
मेरा चेहरा जरूर तेरे सामने आया होगा
सारी दुनिया के सामने
इक दिन मैं आऊंगा
तुमसे ही तुमको चुराकर
डोली में बिठाकर ले जाऊंगा
इक दिन मैं आऊंगा
तुमसे ही तुमको चुराकर
डोली में बिठाकर ले जाऊंगा
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
18th Apr. 2000, '77'
18th Apr. 2000, '77'
shukriya sushma ji..
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