ये दुनिया बदल गयी
ये नज़ारे बदल गए
बदल गया सारा ज़माना
पर मेरे दोस्त तुम न बदलना
तुम्हीं से है ख़ुशी तुम्हीं से है ग़म
तुमसे बिछड़कर ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी न रहेगी
हो जाएगी काले आसमां की तरह
जिसमें नहीं आता है कुछ और नज़र
सिवाए अँधेरा और कालेपन के
गर तुमने न दी जुदाई
और जीवन की राह पर पकड़ा मेरा हाथ
तो मैं हो जाऊंगा
उस फूल की तरह
जो अभी-अभी
कली से फूल बना है
जिसमें आ रही है इक खुशबू
जो दे रही है गवाही कि
तुम मुझमें हो, मुझमें ।
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'19' 23rd Apr. 1999
जिसमें आ रही है इक खुशबू
ReplyDeleteजो दे रही है गवाही कि
तुम मुझमें हो, मुझमें ।
बहुत सुन्दर बधाई