तुझे देखें मेरी आँखें
तुम्हें सोचे मेरा दिल
तुम्हीं तो हो मेरी ग़ज़ल
बस तुम्हीं हो मेरी मंजिल
हर जानिब हो तुम
हर नस में हो तुम
लहू के हर क़तरे में तुम
तुम हो तुम अब हम भी हैं तुम
खुशियों से दिन भर गए हैं
ख्वाबों से रातें भर गयीं हैं
बस एक नहीं हो तुम
आ जाओ बस आ जाओ तुम
कैसे कहूँ कब कहूँ
अब और तुमसे क्या कहूँ
तन्हाईयों को दूर कैसे करूँ
बस इतना बता दो तुम
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
5th July, 2000 '102'
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