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Wednesday, February 22, 2012

ख्वाबों से रातें भर गयीं हैं

तुझे देखें मेरी आँखें 
तुम्हें सोचे मेरा दिल 
तुम्हीं तो हो मेरी ग़ज़ल 
बस तुम्हीं हो मेरी मंजिल 

हर जानिब हो तुम 
हर नस में हो तुम 
लहू के हर क़तरे में तुम 
तुम हो तुम अब हम भी हैं तुम 

खुशियों से दिन भर गए हैं 
ख्वाबों से रातें भर गयीं हैं 
बस एक नहीं हो तुम 
आ जाओ बस आ जाओ तुम

कैसे कहूँ कब कहूँ 
अब और तुमसे क्या कहूँ 
तन्हाईयों को दूर कैसे करूँ 
बस इतना बता दो तुम         

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
5th July, 2000 '102'

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