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Sunday, May 29, 2011

अधूरा ख्वाब

देखे थे जो सपने
वो अधूरे रह गए
मन में छाई थीं कुछ कल्पनाएँ
वो भी पूरी हुयीं

देखा जब मैंने उस चौखट से
जिस पर बैठा था मैं
जाने कब से

तुमने मेरा दिल तोड़ दिया
मुझे ग़मों के संग
फिर छोड़ दिया
खुशियाँ फिर रूठ गयीं
मुझसे दूर -दूर हो गयीं


काश तुम मेरे पास होती
तो मेरे पास
लाख खुशियाँ होती

पर
सोचने से अब होगा क्या
जाओगी तुम क्या
शायद नहीं शायद नहीं
मेरी किस्मत ही ऐसी है
जो इस वक़्त
मैं बिलकुल अकेला हूँ!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'34' 24th May, 1999

3 comments:

  1. wah sir kya shandar alfazo se sajai h apne
    agar wo padegi to ye khwab jaror mukammal hoga...

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  2. अकेलेपन का अहसास ... खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया आप सब का

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