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Monday, May 23, 2011

हाँ -हाँ मुझे याद है

हाँ -हाँ मुझे याद है
वो तेरा प्यार भरा
पहला चुम्बन
जबकि
हाथ तुम्हारे काँप राहे थे
चेहरा सफ़ेद हो रहा था
होंठ ही थरथरा रहे थे
फिर भी
तुमने अपने होठों को मेरे
होठों पर रख दिया था
और मैं
देखता रह गया था
यही था
तुम्हारे पहले प्यार का
पहला इज़हार है

तुमने अपनी बाँहों में मुझे भर लिया था
अपने सीने से लगा लिया था
मैं अवाक् सा रह गया था
धड़कन मेरी बढ़ रही थी
मन कुछ कह रहा था
दिल भी कुछ कहना चाहता था
पर तुमने
एक सुनी थी
और मुझे इतना प्यार किया

कि आज वो प्यार
दिल में ग़म बनकर
चुभ रहा है

हाँ -हाँ मुझे याद है

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"

'31' 18th May, 1999

2 comments:

  1. kya bat hai shahid bhai khyalon ko kaid karna to koi apse seekhe bahut achha mubarak ho....

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  2. सुनील जी, यक़ीनन बड़ी ख़ुशी होती है जब भी आपकी प्रतिक्रिया मिलती है. मुझे अपनी ये नज्में अब पसंद नहीं आती. लेकिन 13- १४ साल पहले लिखी ये रचनाएँ बस इसलिए बाँट रहा हूँ. की कहीं मेरी वो पुरानी डायरी न खो जाये.

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