घुटने से ऊपर उसके कपड़े थे
कंधे से ऊपर उसके बाल थे
दुपट्टा से कोई वास्ता न था
होठों पे कोई कैमीकल लाल था
चाल में उसकी
हवा के झोंके सी लहरें थीं
अदाओं में उसकी नशा सा था
मुझे पहचानने में समय न लगा
नए ज़माने की
वो आधुनिक लड़की थी !
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st June, 2001, '138'
BAHUT SAHI PEHCHANA......
ReplyDelete