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Wednesday, July 14, 2010

क्या करूँ, क्या न करूँ?

समझदार होते हुए भी मैं
हो गया न समझदार
कहाँ गया वो भोलापन
कहाँ गयी वो समझदारी
जिसे मानता था मैं धरोहर

पाया हूँ जब से प्यार तुम्हारा
हो गया हूँ मैं तो पागल
कसम से मेरे जाने जाँ
नहीं है होश अब तो

नज़र आते हो चारों ओर
बस अब तुम्हीं तो हो !
क्या करूँ , क्या न करूँ ?
नहीं आता है अब तो
समझ में !!!

-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
"8" 25th Jan, 1999

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